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    Home»विदेश»पड़ोसी देश में रोजगार संकट गहरा: पाकिस्तान की युवा पीढ़ी और महिलाओं के लिए हालात बदतर
    विदेश

    पड़ोसी देश में रोजगार संकट गहरा: पाकिस्तान की युवा पीढ़ी और महिलाओं के लिए हालात बदतर

    AdminBy AdminNovember 5, 2025No Comments5 Mins Read
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    पड़ोसी देश में रोजगार संकट गहरा: पाकिस्तान की युवा पीढ़ी और महिलाओं के लिए हालात बदतर
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    इस्लामाबाद 
    पाकिस्तान में पहली बार डिजिटल जनगणना हुई और इसी आधार पर पता चल पाया कि यहां बेरोजगारी दर चरम पर है। 7.8 फीसदी युवाओं के पास नौकरी नहीं है यानि 24 करोड़ 15 लाख की आबादी वाले देश के करीब 1 करोड़ 87 लाख युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। पाकिस्तान ऑब्जर्वर नाम के अखबार ने देश की इस दुखती नब्ज को टटोला है। ये रिपोर्ट बेबस पाकिस्तानियों और बेपरवाह हुक्मरानों की पोल खोलती है। सिस्टम को लचर बताते हुए कहती है कि ये बेरोजगारी दर उन पाकिस्तानियों की फिक्र नहीं करती जो नीट (एनईईटी) हैं। नीट से मतलब पढ़ाई (एजुकेशन), रोजगार (एम्पलाईमेंट), और प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) से महरूम करना है। इस आर्टिकल में बताया गया है कि बेरोजगारी का संकट जितना दिखता है उससे कहीं अधिक गहरा है। 15 से 35 साल की उम्र के एक-तिहाई पाकिस्तानी इस समय बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।
    प्रकाशित रिपोर्ट की माने तो 'वर्किंग एज पापुलेशन' यानी काम करने की उम्र वाली आबादी की संख्या भी कुछ कम नहीं है। 17.17 करोड़ लोग जो काम करने में सक्षम हैं उनमें से 11 फीसदी के पास कोई नौकरी नहीं है। आर्टिकल में कहा गया है कि 'नीट' ग्रुप में वे लोग शामिल हैं जिन्होंने पूरी तरह से काम ढूंढना बंद कर दिया है, जो बिना वेतन वाले या असंगठित उपक्रमों से जुड़े हैं, या ऐसे फैमिली बिजनेस में फंसे हैं जिसकी उत्पादन क्षमता कुछ खास नहीं है।
    लेख में पाकिस्तानी महिलाओं की दयनीय स्थिति का भी विवरण है। रिपोर्ट के अनुसार महिला श्रम बल भागीदारी दर भी काफी कम है। 'नीट' की समस्या तो है ही, इसके साथ ही देश की आधी आबादी की कम भागीदारी दर ने परिस्थिति को और भी सोचनीय बना दिया है। ये घटती दरें साफ इशारा करती हैं कि लेबर फोर्स का कौशल अर्थव्यवस्था से कदम ताल नहीं कर पा रहा और इसी वजह से स्ट्रक्चरल बेरोजगारी (संरचनात्मक बेरोजगारी जिसमें नियोक्ता और रोजगार की तलाश कर रहे शख्स का कौशल मेल नहीं खा पाता) बढ़ रही है। इसका जिम्मेदार भी पाकिस्तानी शैक्षिक व्यवस्था को बताया गया है जो पुराने ढर्रे पर चल रहा है। छात्रों को मांग के हिसाब से कुशल नहीं बना पा रहा। व्यावसायिक प्रशिक्षण भी सीमित है, तो दूसरी ओर पढ़े-लिखे युवाओं का झुकाव सरकारी नौकरियों की ओर ज्यादा है। सरकारी नौकरी आबादी के लिहाज से बहुत कम हैं और इसमें कम्पटीशन भी तगड़ा है। कुछ को नौकरी मिलती है तो कइयों के हाथ खाली रह जाते हैं और इस तरह पढ़े-लिखे बेरोजगारों की तादाद में भी इजाफा हो रहा है।
    2025 में बेरोजगारी दर बढ़कर करीब 8 प्रतिशत हो गई है, जिसमें कुल लेबर फोर्स 8 करोड़ 51 लाख 80 हजार और बेरोजगारों की संख्या 68 लाख 10 हजार है। रिपोर्ट कहती है कि रोजगार दर लगभग 52.2 प्रतिशत है, जो बताता है कि काम करने की उम्र वाली लगभग आधी आबादी या तो बेरोजगार है या अल्प-रोजगार (योग्यता के मुताबिक नौकरी न मिलना) की समस्या झेल रही है।
    महंगाई, विदेशी मुद्रा संकट, 2022 और हाल ही में 2025 की बाढ़ के असर ने छोटे बिजनेस और लोकल जॉब मार्केट को तबाह कर दिया है। विश्व बैंक के आपदा-पश्चात आवश्यकता आकलन (पोस्ट-डिजास्टर नीड्स असेस्मेंट) में अरबों डॉलर के नुकसान और लाखों लोगों के दोबारा गरीबी में चले जाने की बात सामने आई। रिपोर्ट सोच समझ कर नीति बनाने की सलाह देती है और आगाह करती है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो ये युवाओं और मुल्क को लंबे समय तक आर्थिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।
    आर्टिकल बेरोजगारी से सिर्फ आर्थिक तौर पर नुकसान की बात नहीं करता बल्कि इससे उभरने वाली बड़ी समस्याओं की ओर भी इशारा करता है। बेरोजगारी की मार और पैसों की कमी के चक्कर में हाशिये पर पड़े युवा जबरन पलायन को मजबूर होते हैं, फिर अपराधी बन जाते हैं या चरमपंथी नेटवर्क का हिस्सा बन देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। निराशा और हताशा के रूप में दिखने वाला मनोवैज्ञानिक असर बहुत गहरा और नुकसानदायक होता है।
    देश के कुछ पिछड़े इलाकों से युवाओं की तस्करी बंधुआ मजदूरी के लिए की जाती है। इतना ही नहीं, उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है या सेक्स ट्रेड में धकेल दिया जाता है। बलूचिस्तान की कोयला खदानें इस शोषण का भयानक प्रतीक बन गई हैं, जहां बुनियादी सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण मजदूर मर जाते हैं। ये दुखद घटनाएं कभी-कभार ही मीडिया में रिपोर्ट की जाती हैं और ये युवाओं को बचाने में सिस्टम की पूर्ण विफलता को दर्शाती हैं।
    अंत में ये खबर पाकिस्तान के हुक्मरानों की वजह से फेल होते समाज की बात करती है। कहती है कुछ मदरसे और सोशल मीडिया पर दीन-हीन जीवन जीने को मजबूर युवाओं को इज्जत और रूतबा देने का करार किया जाता है और फिर इनके हाथों में हथियार थमा दिए जाते हैं। हथियार लहराते युवा समाज में खौफ का प्रतीक बनते हैं और यही एक समाज के तौर पर हमें फेल करता है क्योंकि पाकिस्तानी सिस्टम इन्हें वो मकसद नहीं दे पा रहा जो देश की तरक्की के लिए जरूरी है।

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    Lack of employment in Pakistan
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