चंडीगढ़। हरियाणा में सत्तारूढ़ पर काबिज बीजेपी को कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है। इसके अलावा इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) जैसे छोटे दल अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने मौके का फायदा उठा रहे हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी भी चुनाव में मौका तलाश रही है। हालांकि, सभी पार्टियों को कहीं ना कहीं जाट वोट को साधने की कोशिश करनी पड़ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि हरियाणा में ज्यादातर सीटों पर जाट का दबदबा है और वह सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
जाट समुदाय बीजेपी से नाराज है। इसकी वजह भारतीय सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना, किसानों का विरोध और भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों के विरोध का खराब प्रबंधन है। जाट बीजेपी से इसलिए भी नाराज हैं क्योंकि भगवा पार्टी ने मनोहर लाल खट्टर की जगह किसी जाट को सीएम नहीं बनाया।
कांग्रेस नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि हरियाणा का जाट समुदाय कांग्रेस का समर्थन करता हैं, जबकि राज्य में मुस्लिम मतदाता भी कांग्रेस को ही वोट देंगे। उन्होंने कहा कि हरियाणा में मतदाता बीजेपी की गलत नीतियों से आहत हैं और कांग्रेस के पक्ष में खड़े हैं। जाट कांग्रेस का समर्थन करते हैं लेकिन दूसरी पार्टियों में भी जाट हैं। हरियाणा में पांच फीसदी मुस्लिम वोटर हैं जो कांग्रेस को वोट देंगे क्योंकि बीजेपी उनके खिलाफ नफरत की बात करती है। यह कहना ठीक नहीं है कि जाटों और गैर-जाटों के बीच लड़ाई है।
हरियाणा में, जाट राज्य की आबादी का करीब 22-27 फीसदी हैं। हरियाणा में 37 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें जाट समुदाय उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करता है। इनमें से 22 सीटें जाटलैंड, आठ बागड़ी, चार जीटी रोड बेल्ट और तीन सीटें ब्रज में हैं। जाट प्रभुत्व वाली 37 सीटों में से कुल 30 सीटें रोहतक और हिसार में हैं। इन सीटों पर हरियाणा विधानसभा की 40 फीसदी सीटें हैं, जिससे जाट समुदाय हरियाणा चुनावों में प्रभावशाली माना जाता है। अपने खिलाफ जाटों की नाराजगी के कारण बीजेपी ने इस साल गैर-जाट उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
2024 में, बीजेपी द्वारा मैदान में उतारे गए जाट उम्मीदवारों की कुल संख्या 16 है, जो 2019 में 19 उम्मीदवार और 2014 में 24 उम्मीदवार से कम है। बीजेपी ने अपनी हरियाणा रणनीति को ओबीसी मतदाताओं पर जीत हासिल करने पर केंद्रित किया है, जो राज्य की मतदान आबादी का करीब 30 फीसदी है, जबकि जाटों की संख्या 22-27 फीसदी और अनुसूचित जाति (एससी) की करीब 20 फीसदी है। अब चुनाव में देखना होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।
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