इजरायल ने गुरुवार (23 मई) को चेतावनी देते हुए कहा है कि फिलिस्तीन को बतौर देश मान्यता देने वालों को ‘गंभीर परिणाम’ भुगतने होंगे।
इजरायल की यह चेतावनी ऐसे समय में आई है जब नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए बुधवार को फिलिस्तीन को देश के तौर पर मान्यता देने का फैसला किया।
उसके इस कदम से गाजा में हमास के खिलाफ सात महीने से चल रहे युद्ध में इजरायल अलग-थलग पड़ सकता है। यूरोपीय देशों के फैसले पर इजरायल के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया है।
संबंधों पर गंभीर परिणाम होंगे- इजरायल
मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी जैकब ब्लिटस्टीन ने कहा, “उन्होंने जो फैसला लिया है उसके बाद उन देशों के साथ हमारे संबंधों पर गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे।” एएफपी के अनुसार, ब्लिटस्टीन ने आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन के दूतों के साथ एक बैठक के दौरान यह बयान दिया।
बैठक के दौरान, उन्होंने “फिलिस्तीन को मान्यता देने के उनकी सरकारों के घटिया फैसले के लिए राजदूतों को फटकार लगाई।” इजरायली अधिकारी ने कहा कि यह मान्यता “बंधकों की रिहाई के लिए समझौते को आगे बढ़ाने में मुश्किलें डालेगी। अभी भी कई बंधक गाजा में फिलिस्तीनी आतंकवादियों के पास हैं।” उन्होंने दूतों को हमास द्वारा 7 अक्टूबर के हमले के दौरान पांच महिला सैनिकों के अपहरण का एक वीडियो भी दिखाया।
यह युद्ध को बढ़ावा देती है- इजरायल
इजरायली सरकार के प्रवक्ता, एवी हाइमन ने दूतों को संबोधित करते हुए कहा, “अगर इजरायल ने हाल के महीनों में कुछ सीखा है, तो वह यह है कि हमारे बच्चे एक बेहतर, सुरक्षित भविष्य के हकदार हैं। वे पहले के लोगों द्वारा विदेशों में बैठकर बनाई गई पुरानी, असफल नीतियों के हकदार नहीं हैं। फिलिस्तीनी देश की मान्यता शांति को बढ़ावा नहीं देती है। यह युद्ध को बढ़ावा देती है। इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के लिए किसी भी प्रकार का तथाकथित समाधान जो इजरायल की सुरक्षा से समझौता करता है, उसका मतलब शांति नहीं है। हमारी सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं होगा।” उन्होंने दूतों से पूछते हुए कहा, “7 अक्टूबर के नरसंहार के अलावा, फिलिस्तीनी प्राधिकरण में ऐसा क्या बदलाव आया है कि इस इनाम की आवश्यकता पड़ी?”
वे अपने बच्चों को नफरत करना सिखाते हैं- इजरायल
उन्होंने कहा, “वे पैसों के लिए हत्या की नीति रखते हैं, वे अपने बच्चों को नफरत करना सिखाते हैं। उन्होंने 19 वर्षों में कभी भी चुनाव नहीं कराया है…फतह आतंकवादियों ने गर्व से 7 अक्टूबर के नरसंहार में भाग लिया। फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने 7 अक्टूबर के नरसंहार की निंदा भी नहीं की है। तो फिर ऐसे में यह फिलिस्तीनी देश क्या है जिसे आपने मान्यता दी है? यह केवल एक सार्वजनिक घोषणा है जो इजरायली लोगों के चेहरे पर थूकती है। जबकि दूसरी ओर हम अपने अस्तित्व के लिए, हमारे चारों ओर मौजूद नरसंहारकारी ताकतों के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं।”
इन देशों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता देने की घोषणा तब की गई है जब अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत (आईसीसी) के मुख्य अभियोजक इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनके रक्षा मंत्री के लिए गिरफ्तारी वारंट की मांग कर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) नरसंहार के आरोपों पर विचार कर रही है जिसे इजरायल ने सख्ती से खारिज किया है।
अपने राजदूतों को वापस बुलाया
इसके जवाब में इजरायल ने तीनों देशों से अपने राजदूतों को वापस बुलाया है और इन देशों के राजदूतों को तलब किया है। उसने यूरोपीय देशों पर आतंकवादी समूह हमास को सात अक्टूबर को किए उसके हमले के लिए इनाम देने का आरोप लगाया है। फिलिस्तीन को देश का दर्जा देने का विरोध कर रही नेतन्याहू सरकार का कहना है कि यह संघर्ष सीधे बातचीत से ही हल किया जा सकता है।
फिलिस्तीन को औपचारिक तौर पर देश के रूप में मान्यता 28 मई को दी जाएगी। यह कदम फिलिस्तीन की लंबे समय से की जा रही मांग के अनुरूप है। सबसे पहले नॉर्वे ने फिलिस्तीन देश को मान्यता देने के फैसले की घोषणा की। नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनस गार स्तूर ने कहा, ‘‘अगर मान्यता नहीं दी गयी तो पश्चिम एशिया में शांति स्थापित नहीं हो सकती।’’ उन्होंने कहा कि नॉर्वे 28 मई तक फिलिस्तीन को देश के तौर पर मान्यता दे देगा। उन्होंने कहा, ‘‘फिलिस्तीन देश को मान्यता देकर नॉर्वे अरब शांति योजना का समर्थन करता है।’’
मान्यता देने की योजना बना रहे कई देश
यूरोपीय संघ के कई देशों ने पिछले सप्ताहों में संकेत दिया है कि वे मान्यता देने की योजना बना रहे हैं, उनकी दलील है कि क्षेत्र में शांति के लिए द्वि-राष्ट्र समाधान आवश्यक है। नॉर्वे इजरायल और फिलिस्तीन के बीच द्वि-राष्ट्र समाधान का कट्टर समर्थक रहा है। वह यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है लेकिन इस मुद्दे पर उसका रुख भी यूरोपीय संघ के अन्य सदस्यों के समान है।
नॉर्वे सरकार कहा, ‘‘हमास और आतंकवादी समूहों ने आतंक फैलाया है जो द्वि-राष्ट्र समाधान और इजरायल सरकार के समर्थक नहीं हैं।’’ यह कदम तब उठाया गया है जब इजरायली सेना ने मई में गाजा पट्टी के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों में हमले किए जिससे हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा। साथ ही उसने मानवीय सहायता की आपूर्ति भी बाधित कर दी जिससे भुखमरी का खतरा बढ़ गया है।
वर्ष 1993 में प्रथम ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर के 30 साल से अधिक समय बाद नॉर्वे ने फिलिस्तीनी देश को मान्यता दी है। नॉर्वे सरकार ने कहा, ‘‘तब से फलस्तीनियों ने द्वि-राष्ट्र समाधान की ओर महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।’’ उसने कहा कि विश्व बैंक ने कहा है कि फलस्तीन ने 2011 में देश के तौर पर काम करने का अहम मानदंड पूरा कर लिया था जिसके तहत उसने लोगों को महत्वपूर्ण सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय संस्थान बनाए।
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